Rajput vansh

Rajput vansh

 

गुर्जर-प्रतिहार वंश (Gurjar-Pratihar Dynasty)

  • इस वंश की स्थापना नागभट्ट-ने 730 ई० में की। 
  • नागभट्ट-ने अरबों को सिंध से आगे नहीं बढ़ने दिया।
  • नागभट्ट-ने भड़ौंच एवं मालवा पर अधिकार कर लिया तथा गुजरात से ग्वालियर तक अपना राज कायम किया।
  • इस वंश के शासक वत्सराज (778-805 ई०) ने कन्नौज नरेश इंद्रायुद्ध एवं पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किया। 
  • इस वंश के शासक नागभट्ट-II को राष्ट्रकूट सम्राट गोविंद-III ने हराया था। 
  • नागभट्ट-II ने बंगाल के शासक धर्मपाल को मुंगेर (बिहार) में हराया एवं वहाँ तक अपने शासन क्षेत्र का विस्तार किया। 
  • इस वंश का सबसे अधिक प्रभावी शासक मिहिरभोज था। उसने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाई। 
  • मिहिरभोज वैष्णव धर्म का अनुयायी था एवं उसने ‘विष्णु’ के सम्मान में आदिवाराह की उपाधि धारण की।
  • अरब यात्री सुलेमान के अनुसार मिहिरभोज अरबों का स्वाभाविक शत्रु था। 
  • संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान राजशेखर इस वंश के शासक महेन्द्रपाल के गुरु थे। 
  • प्रतिहार वंश का अंतिम शासक राज्यपाल था।

राजशेखर की प्रसिद्ध रचनाएँ

कबीर मंजरीकाव्य मीमांसाविठ्ठलशाला भंजिकाबाल रामायणभुवन-कोषहरविलास

गहड़वाल वंश (Gahdhwaal Dynasty)

  • चन्द्रदेव गहरवार नामक एक व्यक्ति ने 1080-85 ई० के दौरान कन्नौज पर अधिकार कर लिया तथा इस वंश का शासन स्थापित किया। 
  • गहड़वाल अनुश्रुतियों में इन्हें ययाति का वंशज कहा गया है। । 
  • चन्द्रदेव ने स्वयं को महाराजाधिराज की उपाधि से विभूषित किया। 
  • चन्द्रदेव के राज्य में आधुनिक उत्तर-प्रदेश की लगभग समस्त भूमि शामिल थी तथा उसके राज्य की पूर्वी सीमा गया तक विस्तृत थी। 
  • इस वंश का सबसे अधिक प्रभावशाली शासक गोविंदचंद था। 
  • उसके विद्वान मंत्री लक्ष्मीधर ने कृत्यकल्पतरु नामक ग्रंथ लिखा था। 
  • इस वंश का अंतिम शासक जयचंद थाजिसकी पुत्री संयोगिता का अपहरण  पृथ्वीराज-III (चौहान वंश) ने किया था। 
  • मुहम्मद गोरी ने 1194 ई० में चंदावर के युद्ध में जयचंद को मारकर इस वंश के शासन का अंत कर दिया। 

चौहान या चाहमान वंश (Chouhan Dynasty)

  • इस वंश का उदय शाकंभरी (सांभर-अजमेर के आस-पास) में हुआ। 
  • इस वंश का सर्वप्रथम लेख विक्रम संवत् 1030-973 ई० का दुर्लभ हर्ष लेख है जिसमें इस वंश के गूवक-तक वंशावली दी गई है। 
  • बिजौलिया शिलालेख के अनुसार इस वंश की स्थापना वासुदेव ने की। 
  • चाहमानों की शक्ति का विशेष विकास अर्णोराज के पुत्र चतुर्भुज विग्रहराज बीसलदेव (1153-64 ई०) के काल में हुआ। 
  • विग्रराज-IV ने प्रसिद्ध नाटक हरिकेलि की रचना की। 
  • विग्रहराज-IV के राजकवि सोमदेव ने प्रसिद्ध नाटक ललितविग्रहराज की रचना की।
  • इस वंश का अंतिम एवं सबसे प्रसिद्ध शासक सोमेश्वर का पुत्र पृथ्वीराज-III (इतिहास में पृथ्वीराज चौहान के नाम से प्रसिद्ध) था। 
  • पृथ्वीराज-III (1179-1193 ई०) के राजकवि चंदवरदायी ने प्रसिद्ध ग्रंथ पृथ्वीराज रासो की रचना की। 1193 ई० में मुहम्मद गोरी ने तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज-III को हराकर इस वंश के शासन का अंत कर दिया। 

परमार वंश (Parmar Dynasty)

  • ’10वीं शताब्दी के आरंभ में जब प्रतिहारों का आधिपत्य मालवा पर से समाप्त हो गया तो वहाँ परमार शक्ति का उदय हुआ। 
  • इस वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक श्रीहर्ष था। 
  • इस वंश की स्थापना उपेन्द्रराज ने की तथा धारानगरी को अपनी राजधानी बनाया। 
  • वास्तव में मालवा में परमारों की शक्ति का उत्कर्ष वाक्पति मुंज (972-94ई०) के काल में हुआ। 
  • मुंज की सबसे बड़ी सफलता थी कल्याणी के चालुक्य राजा तैलप को हराना।
  • भोज (1000-1055 ई०) इस वंश का सबसे लोकप्रसिद्ध राजा हुआ। 
  • भोज ने अनेक भारतीय राजाओं को हराया। कहा जा है कि बिहार के पश्चिम में स्थित आराह के आस-पास का क्षेत्र ‘भोज’ के आधिपत्य के कारण भोजपुर कहलाता है। 
  • राजा भोज कविराज की उपाधि से विभूषित था। उसने चिकित्सागणित एवं व्याकरण पर कई ग्रंथ लिखे। 
  • राजधानी धारानगरी में भोज ने एक सरस्वती मंदिर का निर्माण कराया। 
  • चितौड़ के त्रिभुवन नारायण मंदिर का निर्माण राजा भोज’ ने ही करवाया। 
  • परमार वंश के बाद मालवा पर तोमर वंश का शासन हुआइस वंश के अनंगपाल तोमर ने ’11वीं सदी के मध्य में दिल्ली नगर की स्थापना की। 
  • तोमर वंश के बाद चाहमान वंश का एवं 1297 ई० में अलाउद्दीन खिलजी का मालवा पर शासन हुआ।

चंदेल वंश (Chandel Dynasty)

  • आधुनिक बुंदेलखंड की धरती पर प्रतिहार साम्राज्य के पतनावशेष पर चंदेल वंश का उदय हुआ। 
  • खजुराहो इस वंश की राजधानी थी। 
  • इस वंश की स्थापना 831 ई० में नन्नुक ने की थी।
  • इस वंश की राजधानी पूर्व में कालिंजर (महोबा) में थी जिसे इस वंश के शासक धंग ने खजुराहो स्थानांतरित करवाया। 
  • नन्नुक के पौत्रों जयसिंह एवं जेजा के कारण चंदेलों के राज्य क्षेत्र का नाम जेजाकभुक्ति पड़ा।
  • शासक हर्षदेव (905-925 ई०) के समय से चंदेलों की शक्ति में वृद्धि हुई। 
  • हर्षदेव के पुत्र यशोवर्मन को इस वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक होने का श्रेय प्राप्त हैउसने स्वयं को प्रतिहार साम्राज्य से स्वतंत्र किया था। 
  • विश्वनाथजिन्ननाथ एवं वैद्यनाथ मंदिरों का निर्माण इस वंश के शासक धंग ने करवाया। 
  • यशोवर्मन ने खजुराहो में एक विष्णु मंदिर की स्थापना की।
  • इस वंश के शासक विद्याधर ने महमूद गजनी का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया। 
  • चंदेल शासक कीर्तिवर्मन द्वारा महोबा के समीप कीर्तिसागर नामक एक जलाशय का निर्माण कराया गया। 
  • कीर्तिमर्वन के दरबारी कवि कृष्ण मिश्र ने प्रबोध चंद्रोदय नामक प्रसिद्ध कृति की रचना की। 
  • चंदेल शासक परमर्दिदेव के दरबार में आल्हा-उदल नामक दो वीर सेनानायक भाई रहते थे।
  • इस वंश के अंतिम शासक परमादेव के शासनकाल में 1202 ई० में इस क्षेत्र को कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। 

सोलंकी वंश गुजरात के चालुक्य (Sholanki Dynasty)

  • इस वंश की स्थापना मूलराज-I (लगभग 942-95 ई०) ने की। 
  • मूलराज-ने अन्हिलवाड़ा को अपनी राजधानी बनाई एवं गुजरात के एक बड़े क्षेत्र पर अपना शासन कायम किया। 
  • मूलराज-शैवधर्म का अनुयायी था। 
  • सोलंकी शासक भीम-के काल में महमूद गजनी ने सोमनाथ मंदिर को लूटा। 
  • भीम-के सामंत बिमल ने माउंट आबू पर्वत पर प्रसिद्ध दिलवाड़ा जैन मंदिर निर्मित कराया।
  • इस वंश का पहला शक्तिशाली शासक जयसिंह सिद्धराज था जिसके दरबार में प्रसिद्ध जैन विद्वान हेमचंद्र सूरी रहता था। 
  • जयसिंह सिद्धराज ने सिद्धपुर में रूद्रमहाकाल मंदिर का निर्माण कराया। 
  • जयसिंह सिद्धराज ने आबू पर्वत पर अपने सातों पूर्वजों की गजारोही मूर्तियाँ स्थापित की।
  • इस वंश का अंतिम शासक भीम-II था। 

चेदि वंश कलचूरि (Chedi Dynasty)

  • कोक्कल नामक एक व्यक्ति ने इस वंश की स्थापना की तथा त्रिपुरी को अपनी राजधानी बनाया। 
  • इस वंश के एक शक्तिशाली शासक गांगेयदेव ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। 
  • इस वंश के सबसे महान शासक कर्णदेव ने कलिंग पर विजय प्राप्त करके त्रिकलिंगाधिपति की उपाधि धारण की। 
  • प्रसिद्ध साहित्यकार राजशेखर कलचूरियों के दरबार के रत्न थे।

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